एनपीआरसी चौरा बागेश्वर: 'सपनों की उड़ान' कार्यक्रम में बच्चों ने भरी 'मेधा की उड़ान'

सपनों की उड़ान  कार्यक्रम 2024-2025 का आयोजन एनपीआरसी चौरा में किया गया. जिसमे प्राथमिक एवम उच्च प्राथमिक स्कूलों ने प्रतिभाग किया. इस कार्यक्रम के तहत सुलेख हिंदी, अंग्रेजी, सपनों के चित्र, पारंपरिक परिधान, लोकनृत्य, कविता पाठ,कुर्सी दौड़ इत्यादि का आयोजन संपन्न हुआ. सपनों के चित्र, सुलेख हिंदी  प्रतियोगिता में प्रथम स्थान जीवन कुमार ( राजकीय प्राथमिक विद्यालय तल्लाभैरू ) द्वारा प्राप्त किया गया. इसी विद्यालय की छात्रा दीक्षा ने सुलेख अंग्रेजी में प्रथम स्थान प्राप्त किया. कुर्सी दौड़ में राजकीय प्राथमिक विद्यालय चौरा के छात्र रोहित ने प्रथम स्थान प्राप्त किया. सपनों के चित्र प्रतियोगित में उच्च प्राथमिक स्तर पर भैरू चौबट्टा के छात्र करण नाथ ने प्रथम स्थान प्राप्त किया. इसी विद्यालय की छात्रा पूजा  ने सुलेख हिंदी में प्रथम स्थान प्राप्त किया. इस कार्यक्रम में ममता नेगी, भास्करा नंद ,जयंती, कुलदीप सिंह , मुन्नी ओली, सोहित वर्मा , विनीता सोनी, सुनीता जोशी, अनिल कुमार, संगीता नेगी आदि शिक्षक शामिल हुए.

केदारनाथ को भीषण खतरा - 2



2013 की केदारनाथ आपदा ने यहां के जल में अग्निमय ऊर्जा का परिचय दे दिया था। स्कन्द पुराण का केदारखण्ड बताता है कि केदारनाथ में अनेक स्थानों पर पानी बुलबुलों के रूप में निकलता हैं। 

‘‘पारदं दृश्यते तत्र तज्जलं बुदबुदायते’’

अर्थात् पारे के समान उसके जल में बुलबुले उठते रहते हैं।

और ‘‘रक्तवर्ण जलं तत्र बुदबुदाकारनिनिःसृतमृ’’
अर्थात् रक्तवर्ण का जल वहां से बुलबुलों के आकार में निकलता है।
जलमयी भूमि में चरण रखने से भी भूमि कम्पायमान हो जाती है - ‘‘यस्माज्जलमयी भूमिः पदन्यास सुकम्पिता।’’ यहां तक कि दक्षिण दिशा में समुद्रजल की मौजूदगी भी बताई गई है, ‘‘सामुद्रं तज्जलं प्रोक्तं स्पर्शनाच्छिवदायकम्’’। 
केदारनाथ का भूजल वर्फीला ठण्डा होने के बावजूद अग्निमय अर्थात ऊर्जा से भरा हुआ है। शिव स्वयं कहते हैं - हिमान्र्तगलितम् तद्वै जलं वहिृमयं प्रिये’’। यह धाम सात दीवारियों अर्थात पहाड़ियों से घिरा है। ‘‘सप्तप्राकारसंयुक्तमं मम धाम महेश्वरि’’ मंदिर इस धाम के मध्य में है और इसी कारण जलमयी भूमि में विशाल होते हुये भी सन्तुलन में है।
2013 की भीषण आपदा में भी मंदिर के सुरक्षित रहने के पीछे पारिस्थितिकीय और वास्तु विज्ञान की यही समझ है। मंदिर से भारी ढांचा धाम के किसी और हिस्से में बनाया जाता है तो यह असन्तुलन पैदा करेगा। केदार धाम के कुण्ड भूमिगत जल को निरन्तर रिलीज करते रहते हैं। धाम में जैसा कि किया जा रहा है, पक्के व स्थाई निर्माण से भूजल के रिलीज होने की यह प्रक्रिया बाधित होने का खतरा है। 
पहाड़ के गांवों में उन स्थानों पर मकान बनाने से परहेज किया जाता है, जहां कि बरसात में छोये (जलश्रोत) फूटते हैं। यह समझ लेना चाहिये कि केदार मंदिर के चारों तरफ ऐसे स्थान लगातार मौजूद हैं।
जारी...
- महिपाल नेगी 

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