Dr. Rashmi Singh : एडीएचडी (ADHD) शिशु के लिए समस्या भी है और वरदान भी

  ADHD एक मनोवैज्ञानिक समस्या है.अक्सर यह बच्चों में देखी जाती है लेकिन जागरूकता के अभाव में इसे अनदेखा कर दिया जाता है. क्या आपके बच्चे को किसी काम में ध्यान लगाने में कठिनाई महसूस होती है? क्या उसे एक ही जगह पर टिक के रहने में परेशानी होती है? क्या उसके व्यव्हार में असावधानी, हाइपरएक्टविटी और आवेग शामिल हैं। यदि उसे यह समस्याएं हैं और आपको लगता है कि यह उसके दैनिक जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं, तो यह Attention deficit hyperactivity disorder (ADHD) का संकेत हो सकता है। लेकिन थोड़े समझ के साथ आप एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित बच्चों को व्याहारिक तौर पे बेहतर बना सकते हैं।एडीएचडी (ADHD) शिशु के लिए समस्या भी है और वरदान भी। एडीएचडी (ADHD) बच्चे में उर्जा का भंडार होता है। यही वजह है की वे अपनी उर्जा को किसी एक दिशा में केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। मगर, सही मार्गदर्शन में एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित बच्चा अपने जीवन में बहुत अधिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।आप को ताजुब होगा यह जान कर के की बहुत से ख्याति प्राप्त और अत्याधिक सफल उधमी कभी बचपन में एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित थे। Attention defic

बागेश्वर : चन्दन राम दास को मंत्री बना कर कुमाऊँ मण्डल को मजबूत करेगी भाजपा !

बागेश्वर विधानसभा से चन्दन राम दास को कैबिनेट मंत्री बनाए जाने के बाबत कार्यकर्ताओं ने बैठक की. असल में चन्दन राम दास बागेश्वर से विधानसभा से लगातार तीन बार से विधायक है.लोकप्रियता एवं जनकल्याणपरक कार्यों के लिहाज से उनकी पूरे प्रदेश में शानदार छवि है. तीन दशकों के राजनीतिक सफ़र में उनकी जनलोकप्रिय एवं छवि साफ़ सुथरी रही है.पूर्ण रूप से आरोप रहित उनकी छवि रही है.दो दशकों से राजनीतिक रसूख  उनके शानदार राजनीतिक जीवन को प्रभावित नहीं कर सका.उनकी जनसंघर्षों एवं धरातीय जन नेता की छवि कायम है.अफसोसजनक पहलू यह है कि चन्दन राम दास की जनकल्याणकारी सोच का फायदा न बागेश्वर जनपद को मिल सका है. न ही पार्टी को. आज भाजपा में ऐसे लोगों का कब्ज़ा हो गया है जो आया राम - गया राम की राजनीति में मशगूल है.जिनका राजनीतिक शुचितावादीता पूर्ण रूप से शून्य साबित हो चुकी है.जबकि भाजपा पार्टी के ही समर्पित जनों की अनदेखी का शिकार होना पड़ रहा है. चन्दन राम दास और बागेश्वर विधानसभा इसकी बानगी है.दूसरी तरफ कांग्रेस के दल बदल कर आये लोगों को प्रथम प्राथमिकता मिल रही है.यशपाल आर्य एवं उनके पुत्र संजीव कांग्रेस से भाजपा में पिछलें विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ज्वाइन कर ली.और भाजपा सरकार में मंत्री बन कर. समर्पित भाजपा नेताओं के प्रथम नैतिक अधिकार पर कब्ज़ा कर लिया. इस तरह की राजनीति से समर्पित भाजपा नेताओं के लिए पार्टी में भविष्य संदेहयुक्त हो चला है.निष्ठावान कार्यकर्ताओं में आज "शंका" और संदेह के बादल है.एक तरफ कांग्रेस अपने दलित चेहरों को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित करने का प्रयास कर रही है.लेकिन भाजपा दो तीन दशकों से पार्टी की सेवा भाव और निष्ठां का प्रतिफल मिलना संदेहयुक्त हो गया है.तीन बार के विधायक भी कब मंत्री बनेंगे.?..या कोई कांग्रेसी मूल का नेता "समर्पित भाजपा नेताओ के प्रथम नैतिक अधिकार को किसी सियासी फ़साने में अँधेरे की तरफ धकेल दिया जाएगा? आखिर भाजपा का समर्पित निष्ठावान जनकल्याणकारी सेवक क्या विकल्प अपना सकता है? उसकी राजनीतिक हैसियत को उचित मुकाम कैसे मिल सकेगा? सारे सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में है.देखना होगा भाजपा हाईकमान क्या फैसला लेता है.